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स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने छत्रपति शिवाजी महाराज को अर्पित की श्रद्धांजलि

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Kuldeep Khandelwal/ Niti Sharma/ Kaviraj Singh Chauhan/ Vineet Dhiman/ Anirudh vashisth/ Mashruf Raja / Anju Sandip

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज छत्रपति शिवाजी महाराज जी की पुण्यतिथि पर उनकी देशभक्ति को नमन करते हुये श्रद्धाजंलि अर्पित की। आज की परमार्थ गंगा आरती शिवाजी महाराज को समर्पित की गयी।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने संदेश दिया कि मातृभूमि के लिये सर्वस्व न्यौछावर करने वाले शिवाजी महाराज जी की देशभक्ति, मातृभूमि के प्रति श्रद्धा और समर्पण आज के युवाओं के लिये प्रेरणा का स्रोत है। शिवाजी महाराज अद्म्य साहस के धनी योग्य सेनापति तथा कुशल राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने एक मजबूत मराठा साम्राज्य की नींव रखी और दक्कन से लेकर कर्नाटक तक मराठा साम्राज्य का विस्तार किया ऐसे महान शासक को शत-शत नमन।
स्वामी जी ने कहा कि शिवाजी महाराज को राज्य का मोह नहीं था परन्तु अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र और बेड़ियों से मुक्त करना चाहते थे और इस हेतु शिवाजी ने अपने साम्राज्य में एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था के साथ कठोर अनुशासन का पालन करने वाली मराठा सेना बनायी थी जो कि छापामार युद्ध नीति में कुशल थी। शिवाजी के नेतृत्व में मराठा सैनिकों ने अनेक उपलब्धियों को हासिल किया था। शिवाजी एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट थे जिन्हें अपनी मातृभूमि से अद्भुत प्रेम था।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि शिवाजी महाराज धर्मपरायण होने के साथ-साथ धर्म सहिष्णु भी थे। उनके शासनकाल एवं साम्राज्य में सभी को धार्मिक स्वतंत्रता दी गयी थी और वे सभी धर्मो, मतों और सम्प्रदायों का आदर और सम्मान करते थे। शिवाजी महाराज ने भारतीय संस्कृति, मूल्यों तथा शिक्षा पर अधिक बल दिया।
स्वामी जी ने कहा कि सम्पूर्ण विश्व के लिये ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की कामना करने वाली भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम् के सूत्र को आत्मसात कर शान्ति के साथ जीवन में आगे बढ़ने का संदेश देती है। मानव जीवन के अस्तित्व के साथ ही भारतीय संस्कृति ने सम्पूर्ण मानवता को जीवन के अनेक श्रेष्ठ सूत्र दिये और आज भी उन सूत्रों और मूल्यों को धारण कर वह निरंतर विकसित हो रही है।
शिवाजी महाराज न केवल एक कुशल सेनापति और एक कुशल रणनीतिकार थे बल्कि वे एक देशभक्त भी थे. उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया।
भारतीय संस्कृति मानव को अपने मूल से; मूल्यों से, प्राचीन गौरवशाली सूत्रों, सिद्धान्तों एवं परंपराओं से जोड़ने के साथ ही अपने आप में निरंतर नवीनता का समावेश भी करती है। जिस प्रकार अलग-अलग नदियां जिनके नाम अलग होते हंै, उनके जल का स्वाद भिन्न होता है परन्तु जब वह समुद्र में जाकर मिलती है तो उन सब का एक नाम हो जाता है और उस जल का स्वाद भी एक ही होता है, उसी प्रकार भारतीय संस्कृति ने भी विभिन्न संस्कृतियों के संगम के साथ एकता की संस्कृति को जन्म दिया। शिवाजी महाराज ने राष्ट्र की एकता और एकजुटता के लिये अद्भुत कार्य किये। इतिहास के पन्नों पर उनके अद्म्य साहस और अपने राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने के अनेक उदाहरण मिलते हैं। ऐसे महापुरूष की पुण्यतिथि पर नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि। भारत में सदैव उनकी वीरता की गाथायें गाई जायेगी।

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