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Columbia Pacific Virtual University ने देवेन्द्र चमोली को ‘‘मानद डाक्टरेट’’ की उपाधि से किया विभूषित, जानिए क्या है वजह?

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Kuldeep Khandelwal/ Niti Sharma/ Kaviraj Singh Chauhan/ Vineet Dhiman/ Anirudh vashisth/ Mashruf Raja / Anju Sandi

मैठाणी NIU ✍️ देहरादून, इण्डिया बुक ऑफ रिकार्ड में जगह बनाने वाली ‘‘विश्व की प्रथम दस हजार प्रश्नोत्तरी रामायण’’ के शोधकर्ता देवेन्द्र प्रसाद चमोली का साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान अत्यंत विलक्षण है। टिहरी गढ़वाल, जौनपुर ब्लॉक के निवासी देवेन्द्र प्रसाद चमोली ने पाँच वर्षों की गहन शोध प्रक्रिया के पश्चात् ‘‘दस हजार प्रश्नोत्तरी रामायण’’ की रचना की—जिसमें संपूर्ण रामायण महाकाव्य से जुड़े 10,000 प्रश्न-उत्तर एक-एक पंक्ति में समाहित हैं। यह कार्य अब तक विश्व में अपने आप में अनूठा और पहला प्रयास है, जिसके लिए उन्हें ‘‘इण्डिया बुक ऑफ रिकार्ड 2025’’ द्वारा सम्मानित किया गया।

रामायण पर देश-विदेश में अनेक भाषाओं में तीन सौ से अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, परन्तु सामान्य ज्ञान के रूप में इतनी व्यापक प्रश्नोत्तरी पहले कभी प्रकाशित नहीं हुई। इसका उद्देश्य न केवल रामायण के अध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को प्रचारित करना है, बल्कि नई पीढ़ी को इसकी व्यापकता और गहराई से जोड़ना भी है। श्री चमोली ने यह भी उल्लेख किया कि गढ़वाली रामायण और गढ़वाली श्रीमद्भगवद्गीता को उत्तराखंड के विद्यालयों में उपलब्ध करवाना राज्य की एक ऐतिहासिक उपलब्धि है

उल्लेखनीय है कि भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा-वृन्दावन में ‘‘कोलम्बिया पेसिफिक वर्चुअल यूनिवर्सिटी’’ द्वारा आयोजित भव्य कार्यक्रम में देवेन्द्र चमोली को ‘‘मानद डाक्टरेट’’ की उपाधि (Honorary Doctorate) से विभूषित किया गया। कार्यक्रम की भव्यता और आयोजन स्थल की आध्यात्मिक महत्ता ने इस उपलब्धि को और भी ऐतिहासिक बना दिया। मथुरा-वृन्दावन, जो स्वयं भगवान श्री कृष्ण की लीला भूमि रही है, वहाँ साहित्य-संस्कृति के क्षेत्र में योगदान के लिए यह वैश्विक स्तर की मानद डिग्री मिलना न केवल श्री चमोली के लिए गौरव की बात है, बल्कि सम्पूर्ण देश और उत्तराखंड के लिए भी गर्व है।

यह सम्मान भारतीय संस्कृति और धरोहर के संरक्षण, सामाजिक सरोकारों तथा शोध क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए उन्हें प्रदान किया गया। ‘‘मानद डाक्टरेट’’ केवल प्रतिष्ठित और समाज को नई दिशा देने वाले व्यक्तियों को दिया जाता है—यह उपलब्धि देवेन्द्र चमोली के समर्पण, श्रम और शोध के प्रति गहन लगन का प्रमाण है।

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