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हरिद्वार के रहने वाले लेफ्टिनेंट कर्नल अवनीश प्रताप सिंह का असामयिक निधन

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Kuldeep Khandelwal/ Niti Sharma/ Kaviraj Singh Chauhan/ Vineet DhimanAnirudh vashisthMashruf Raja

हरिद्वार के उपनगर ज्वालापुर के जगदीश नगर कॉलोनी के रहने वाले भारतीय थल सेवा में तैनात लेफ्टिनेंट कर्नल अवनीश प्रताप सिंह की हृदयगति रुकने से आज तड़के नई दिल्ली स्थित सेना के आर एंड आर
अस्पताल में असामयिक मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु की खबर जैसे ही तीर्थ नगर हरिद्वार में पहुंची यहां शोक की लहर दौड़ गई। 45 साल के अवनीश के पिता लोकेंद्र पाल सिंह डॉक्टर हरिरामआर्य इंटर कॉलेज मायापुर कनखल में शिक्षक रहे हैं और उनके स्वर्गीया माता भेल हरिद्वार में कार्यरत थी। अवनीश चेन्नई में ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी से सफलतापूर्वक उत्तीर्ण होने के बाद वर्ष 2005 में भारतीय सेना में शामिल हुए। वे अपने पीछे पिता, पत्नी साधना दो बच्चों पुत्र और पुत्री को छोड़ गए।
उनके निधन पर केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उत्तराखंड के राज्यपाल सेवानिवृत्ति लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी तथा सेवा के कई आलाधिकारियों ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है।
1979 में जन्मे लेफ्टिनेंट कर्नल अवनीश प्रताप सिंह दार्जिलिंग के सुकना क्षेत्र में कमांडिंग ऑफिसर के पद पर तैनात थे। वे कुछ साल पहले सियाचिन और कश्मीर में भी तैनात रहे। बीएससी, एमसीए, एमबीए, ए लेवल डीओईएसीसी तथा कई अन्य डिग्रियां उन्होंने हासिल की थी। होनहार लेफ्टिनेंट कर्नल अवनीश प्रताप सिंह भारतीय सेना में भर्ती होने से पहले देहरादून के वाटरशेड मैनेजमेंट डायरेक्टरेट में सिस्टम प्रोग्रामर के पद पर कार्यरत थे।
अवनीश ने भारतीय सेना के लिए कंप्यूटर का सिमुलेशन सॉफ्टवेयर बनाया था, जिससे सेना को काफी तकनीकी लाभ हुआ। इसके लिए उनको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भी अवार्ड प्रदान किया गया था।गौरतलब है कि पहले यह सॉफ्टवेयर विदेश से करोड़ों रुपए में खरीदा जाता था लेकिन अब इसे देश में ही बनाया जाता है।
अवनीश की शिक्षिका डॉ राधिका नागरथ बताती है कि जब वह एप्टेक मेरे पास आया था तो बहुत ही शर्मीला लड़का था लेकिन बहुत मेधावी छात्र था। एक साथ कई कोर्स में खुद को शामिल कर लेता था और हमेशा कुछ नया करने की होड़ में लगा रहता था। इसी का परिणाम था कि उसने भारतीय सेना के लिए एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया जिससे भारतीय सेना को सही जगह पर अपना निशाना लगाने में बहुत मदद मिलती थी।

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