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अब स्कूली छात्र पढ़ेंगे गढ़वाली-कुमाऊंनी सहित अपनी लोकभाषाएं, तैयार हो रहा ये सिलेबस

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Kuldeep Khandelwal/ Niti Sharma/ Kaviraj Singh Chauhan/ Vineet Dhiman

उत्तराखंड में सरकार स्थानिए भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए बड़ा कदम उठा रही हैं। अब राज्य के विद्यालयों में अन्य विषयों के साथ गढ़वाली-कुमाऊंनी सहित लोक भाषाएं भी पढ़ाई जाएगी। जिसकी कवायद तेज हो गई है। लोक भाषा आधारित पुस्तकों के लिए सिलेबस तैयार किया जा रहा है। आइए जानते है इस सिलेबस को कौन तैयार कर रहा है।

मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश में जल्द लोक भाषा गढ़वाली, कुमाऊंनी व जौनसारी स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा होंगी। स्टेट काउंसिल आफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एससीईआरटी) ने इस संबंध में पाठ्यचर्या तैयार कर ली है। प्रथम चरण में गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी लोक भाषा से संबंधित पाठ्य पुस्तकें तैयार की जा रही हैं। बाद में अन्य लोक भाषाओं को भी चरणबद्ध तरीके से सम्मिलित किया जाएगा।

बताया जा रहा है कि लोक भाषाओं के विलुप्त होने के प्रति चिंता व्यक्त की गई।लोक भाषा आधारित पुस्तकों को लिखने के लिए गढ़वाली भाषा में विशेषज्ञ के रूप में डा. उमेश चमोला, कुमाऊंनी के लिए डा. दीपक मेहता, जौनसारी के लिए सुरेंद्र आर्यन योगदान दे रहे हैं। कक्षावार पुस्तकों के लेखन के लिए समन्वयक के रूप में डा. अवनीश उनियाल, सुनील भट्ट, गोपाल घुघत्याल, डा. आलोक प्रभा पांडे और सोहन सिंह नेगी कार्य कर रहे हैं।

गढ़वाली भाषा के लेखक मंडल में गिरीश सुंदरियाल, धर्मेंद्र नेगी, संगीता पंवार और सीमा शर्मा, कुमाऊंनी भाषा के लेखक मंडल में गोपाल सिंह गैड़ा, रजनी रावत, डा. दीपक मेहता, डा. आलोक प्रभा व बलवंत सिंह नेगी शामिल हैं। जौनसारी भाषा लेखन मंडल में महावीर सिंह कलेटा, हेमलता नौटियाल, मंगल राम चिलवान, चतर सिंह चौहान व दिनेश रावत ने योगदान दिया। माना जा रहा है कि लोक भाषाओं में पाठ्य पुस्तकें शामिल करने से बच्चों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का अवसर मिलेगा। इससे छात्रों का साहित्यिक प्रतिभा का भी विकास होगा।

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